हर तरह के मुखौटे, वो लगाए हुए हैं,लोग औकात अपनी, यूं छुपाये हुए हैं !क़त्ल करके भी बेगुनाह बनते हैं वो,झूठी शराफत के, चश्मे लगाए हुए हैं !हर तरफ दिखता है अजब सा समां,फूलों की राहों में, कांटे बिछाए हुए हैं !अपनों पे क्या यक़ीं कब तक निभाएं,अंदर तो वो भी, मतलब बसाये हुए हैं !जो भी दिखता है वो वैसा नहीं है दोस्त,सब के सब तो,असलियत छुपाये हुए हैं !
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